Tuesday, May 26, 2015

मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए


मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए 

मिरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए 
  
ज़मीं सख़्त है आसमाँ दूर है 
बसर हो सके तो बसर कीजिए



सितम के बहुत से हैं रद्द-ए-अमल
ज़रूरी नहीं चश्म तर कीजिए



वही ज़ुल्म बार-ए-दिगर है तो फिर
वही जुर्म बार-ए-दिगर कीजिए



क़फ़स तोड़ना बाद की बात है
अभी ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर कीजिए

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