Wednesday, November 11, 2009

मैं ज़िन्दगी का साथ/Main Zindagi ka saath

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

बरबादियों का सोग मनाना फ़ुजूल था
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया

जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया

ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मुक़ाम पर लाता चला गया

1 comment: