Friday, January 1, 2010

gulaabi choodiyan- nagarjun

गुलाबी चूड़ियाँ
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!

सामने गियर से ऊपरहुक से लटका रक्खी
हैंकाँच की चार चूडियाँ
गुलाबीबस की रफ़्तार के मुताबिकहिलती रहती हैं
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटकाअधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला
चेहराआहिस्ते से बोला :
हाँ सा'बलाख कहता हूँ, नहीं मानती है
मुनियाटाँगे हुए है कई दिनों सेअपनी अमानतयहाँ अब्बा की नज़रों के
सामनेमैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूडियाँकिस जुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखाऔर मैंने एक नज़र से उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-सादे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गई सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -हाँ भाई,
मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यों ही पूछ लिया
आपसे
वर्ना ये किसको नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!

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