Saturday, October 10, 2009

हो गई है पीर पर्वत /Ho gayi hai peer


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।


आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोश‍िश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

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